यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते ।
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए ।
बचपन में सब पुछा करते थे कि
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला, - फिर से बच्चा बनना है ।
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी -
जवानी का लालच दे के बचपन छिन ली,
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा ।
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता ।
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब !
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर ।
जब लगे कमाने तो समझ आया,
शौक तो बाप के कमाई से पुरे होते थे,
अपने से तो सिर्फ - जरूरत ।
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की
जीने के लिए काम करता हूँ
या काम करने के लिए जीता हूँ ।
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे ।
#बटुल्बाटुल
२०७३/०७/२५
प्यास लगी थी गजब की
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते ।
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए ।
बचपन में सब पुछा करते थे कि
"बङे हो कर क्या बनना है ?"
जवाब अब मिला, - फिर से बच्चा बनना है ।
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी -
जवानी का लालच दे के बचपन छिन ली,
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा ।
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता ।
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब !
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर ।
जब लगे कमाने तो समझ आया,
शौक तो बाप के कमाई से पुरे होते थे,
अपने से तो सिर्फ - जरूरत ।
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ हर रोज़ थका-हारा,
आज तक समझ नहीं आया की
जीने के लिए काम करता हूँ
या काम करने के लिए जीता हूँ ।
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे ।
#बटुल्बाटुल
२०७३/०७/२५
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