– पवन दिक्षित
Pawan Dixit
जो मैं ऐसा जानता हुँ – उस के है भाई चार,Pawan Dixit

उस से हम क्योँ भला छेडखानी करेँ, जिसके भाई सभी पहलवानी करें
माना उस से कोही खुबसुरत नहीँ, है कोही दिल कि जिस मे वह मुरत नहीँ
पसलियाँ एक हो जाए जो प्यार मे, मुझ को उस प्यार के पर जरुरत नहीँ
उस पे कुरबान क्योँ यह जवानी करेँ, जिसके भाई सभी पहलवानी करें
हात पैरों से मोहताज हो जाउँ मै, एक टुटा हुआ साज हो जाउँ मै
ईश्क के इस झमेले में क्यों ख्वामोखा, I am से I was हो जाउँ मैं
मुफ्त मे क्योंँ फना जिन्दगानी करें, जिसके भाई सभी पहलवानी करें
क्यों कहुँ झुठ मैं उन से डरता नहीँ, ऐसे हिम्मत कि दावा मैं करता नहीँ
उसके भाई कहीँ न मुझे देखले, उस मोहल्ले से मै गुजरता नहीँ
कि उन कि जुतेँ मेरी मान हानी करें, जिसके भाई सभी पहलवानी करें
जिस पे खतरा हो उस मे क्यूँ ट्राई करें, सब से पिट्ते फिरेंँ जगहसाई करें
उस के भाई जो ठोके तो ठोके मगर, राह चल्ते भि मेरी ठुकाई करें
अपनी काया से क्योँ बेईमानी करें, जिसके भाई सभी पहलवानी करें
बात करने का भि है नहीँ हौसला, बेहत्तर है शुरक्षित रखेंँ फैसला
भाईयोँ कि पिटाई झिलेगी नहीँ, बस यही सोच के करलिया फैसला
अपनी अपनी यहीँ पे कहानी करेँ, जिसके भाई सभी पहलवानी करें